जाति प्रथा की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन
जाति प्रथा की निम्न विशेषताएं हैं -
जाति जन्म पर आधारित होती है
जाति व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता यह है की जाति जन्म से आधारित होती है। जो व्यक्ति जिस जाति मे जन्म लेता है वह उसी जाति का सदस्य बन जाता है।
जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय
प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवस्था होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जजमानी व्यवस्था रही है। जजमानी व्यवस्था मे जातिगत पेशे के आधार पर परस्पर निर्भरता की स्थिति सामाजिक संगठन का आधार थी। लेकिन आज आधुनिकता के चलते नागरीकरण, औधोगीकरण आदि के चलते अब जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय बहुत कम रह गया है।
जाति स्थायी होती है
जाति व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति की जाति हमेशा के लिए स्थायी होती है उसे कोई छुड़ा नही सकघता या बदल नही सकता। कोई भी व्यक्ति अगर आर्थिक रूप से, राजनैतिक रूप से या किसी अन्य साधन से कितनी भी उन्नति कर ले लेकिन उसकी जाति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही हो सकता।
ऊंच- नीच की भावना
हांलाकि अब वर्तमान भारतीय ग्रामीण समाज में जाति के परम्परागत संस्तरण के आधारों मे परिवर्तन आया है। लेकिन फिर भी जाति ने समाज को विभिन्न उच्च एवं निम्न स्तरों में विभाजित किया गया है प्रत्येक जाति का व्यक्ति अपनी जाति की सामाजिक स्थिति के प्रति जागरूक रहता है।
मानसिक सुरक्षा प्रदान करना
जाति व्यवस्था में हांलाकि दोष बहुत है लेकिन जाति व्यवस्था की अच्छी बात यह है कि यह अपने सदस्यों को मानसिक सुरक्षा प्रदान करती है। जिसमें सभी सदस्यों को पता होता है कि उनकी स्थिति क्या है? उन्हें क्या करना चाहिए।
विवाह सम्बन्धी प्रतिबन्ध
जाति व्यवस्था के अर्न्तगत जाति के सदस्य अपनी ही जाति मे विवाह करते है। अपनी जाति से बाहर विवाह करना अच्छा नही माना जाता है। उदाहरण के लिए ब्राह्माण के लड़के का विवाह ब्राह्राण की लड़की से ही होगा। किसी अन्य जाति से नही।
समाज का खण्डात्मक विभाजन
जाति व्यवस्था ने संपूर्ण समाज का खण्ड-खण्ड मे विभाजन कर रखा है। समाज का विभाजन होना देश की एकता के लिए सही नही है।