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भारत में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों के प्रकारों की व्याख्या कीजिये ।

भारत में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों के प्रकारों की व्याख्या कीजिये । नीति निर्देशक सिद्धांतों का वर्गीकरण  नीति - निर्देशक सिद्धान्तों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है । वे हैं :  आर्थिक और सामाजिक सिद्धांत ;  गाँधीवादी सिद्धांत ;  अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से संबंधित सिद्धांत और  विविध सिद्धांत  आर्थिक और सामाजिक सिद्धांत लोगों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए राज्य निम्नलिखित प्रयास करेगा :  स्त्री और पुरुष दोनों के लिए आजीविका का पर्याप्त साधन जुटाना ।  कुछ हाथों में संपति का संकेन्द्रण रोकने के लिए आर्थिक व्यवस्था का पुनर्गठन ।  समान कार्य के लिए स्त्री और पुरुष दोनों को समान पारिश्रमिक मिले ।  स्त्री, पुरुष और बच्चों के लिए योग्य रोजगार एवं कार्य का स्वच्छ वातावरण तैयार करना ।  बच्चों को शोषण और नैतिक अधोगति से बचाना ।   रोजगार एवं शिक्षा का अधिकार तथा बेराजगारी, बुढ़ापे, बीमारी एवं असमर्थता की स्थिति में सरकारी सहायता के कारगर उपाय करना ।  कार्य का न्यायोचित एवं मानवीय वातावरण तैयार करना एवं प्रसूति सेवा की व्यवस्था करना ।  सार्वजनिक उपक्रमों के प्रबंधन

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किस प्रकार से प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंध करने की स्वतंत्रता देता है ? व्याख्या लीजिये ।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किस प्रकार से प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंध करने की स्वतंत्रता देता है ? व्याख्या लीजिये । धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता :  लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को  ( क ) धार्मिक और परोपकारी प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और संचालन का  ( ख ) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का  ( ग ) चल - अचल सम्पत्ति के अर्जन और स्वामित्व का और  ( द ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा ।

भारत में कार्यपालिका और विधायिका के मध्य निकट संबंधों का वर्णन कीजिये ।

भारत में कार्यपालिका और विधायिका के मध्य निकट संबंधों का वर्णन कीजिये । Describe the state of close relationship between the legislature and executive in India. कार्यपालिका संघीय कार्यपालिका में राष्‍ट्रपति, उपराष्‍ट्रपति और राष्‍ट्रपति को सहायता करने एवं सलाह देने के लिये अध्‍यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री के साथ मंत्रिपरिषद होती है। केंद्र की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति को प्राप्‍त होती है, जो उसके द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर संविधान सम्मत तरीके से इस्तेमाल की जाती है। राष्‍ट्रपति के चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्‍य तथा राज्‍यों में विधानसभा के सदस्‍य समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के तहत मतदान करते हैं। उपराष्‍ट्रपति के चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा संसद के दोनों सदनों के सदस्‍य मतदान के पात्र होते हैं। राष्‍ट्रपति को उसके कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व में मंत्रिपरिषद होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है और वह प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्‍य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रू

वन्य जीवन अभयारण्य किस प्रकार महत्वपूर्ण है ? कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए ।

वन्य जीवन अभयारण्य किस प्रकार महत्वपूर्ण है ? कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए । वन्यजीव अभयारण्य वन्यजीव अभयारण्यों के मुख्य उद्देश्य वन्य जीवन की व्यवहार्य आबादी और अपने वांछित वास के रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए है । भारत वन्यजीव अभयारण्यों , लगभग 2000 पक्षी , स्तनधारियों की 3500 प्रजातियां, कीड़ों की लगभग 30,000, पौधों के 15000 किस्मों का घर है । इन अभयारण्यों और वन क्षेत्र में एशियाई हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर, हिम तेंदुए और साइबेरियन क्रेन की तरह कई लुप्तप्राय जानवरों और पक्षियों की प्रजातियां निवास करती हैं । भारत के वन्यजीव अभयारण्य कई जानवरों की कुछ विशेष प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध हैं । उदाहरण के लिए, असम में काजीरंगा भारतीय गैंडा लिए जाना जाता है, जबकि केरल में पेरियार उसके हाथियों के लिए प्रसिद्ध है । भारत में 551 वन्यजीव अभयारण्य हैं । भारत भी कई प्रवासी पशुओं और ओलिव रिडले , समुद्री कछुए , साइवेरियन क्रेन और राजहंस की तरह पक्षियों का घर है ।  नेशनल पार्क - राष्ट्रीय पार्कों की स्थापना का उद्देश्य प्राकृतिक और ऐतिहासिक वस्तुओं और वन्य जीवन संरक्षण है जिसमें वन्य जीवों को खुला छोड़

जेट धाराएं क्या है, यह किस तरह से भारत की जलवायु को प्रभावित करती है ?

जेट धाराएं क्या है, यह किस तरह से भारत की जलवायु को प्रभावित करती है ? जेट धाराएँ वायुमंडल में तेजी से घूमने और बहने वाली वायु की धाराएँ होती हैं । यह क्षोभमंडल के ऊपरी सतह पर बहुत ही तेज गति से चलने वाली वायु प्रणाली है । यह धाराएँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं , और वायुमंडल में 8 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है । जेट धाराएँ धरती पर एक आवरण के रूप में कार्य करती हैं , जो निचले वातावरण के मौसम को प्रभावित करती हैं । ये भारत की जलवायु को निम्न तरीके से प्रभावित करते हैं - ये धाराएँ भारत के उत्तर और पश्चिमी भाग में पश्चिमी प्रवाह को लाने में सहायक होती हैं ।  ये धाराएँ भारत के उत्तर और पश्चिमी हिस्से में शीतकालीन वर्षा लाने में सहायक होती है, जो कि रबी की फसल के लिए आवश्यक है ।  इन धाराओं के प्रभाव से जुलाई माह से सितंबर तक भारत में मूसलाधार बारिस होती है । यह जेट हवाओं के कारण ही संभव होता है । जेट धारायें क्या हैं ? भारत के मौसम परिवर्तन में ये किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं ? (niossocialscience.blogspot.com)

जेट धारायें क्या हैं ? भारत के मौसम परिवर्तन में ये किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं ?

जेट धारायें क्या हैं ? भारत के मौसम परिवर्तन में ये किस प्रकार महत्वपूर्ण हैं ? जेट धाराएँ वायुमंडल में तेजी से घूमने और बहने वाली वायु की धाराएँ होती हैं । यह क्षोभमंडल के ऊपरी सतह पर बहुत ही तेज गति से चलने वाली वायु प्रणाली है । यह धाराएँ पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं , और वायुमंडल में 8 से 12 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है । जेट धाराएँ धरती पर एक आवरण के रूप में कार्य करती हैं , जो निचले वातावरण के मौसम को प्रभावित करती हैं । ये भारत के मौसम में निम्न प्रकार से महत्वपूर्ण है - ये धाराएँ भारत के उत्तर और पश्चिमी भाग में पश्चिमी प्रवाह को लाने में सहायक होती हैं ।  ये धाराएँ भारत के उत्तर और पश्चिमी हिस्से में शीतकालीन वर्षा लाने में सहायक होती है , जो कि रबी की फसल के लिए आवश्यक है ।  इन धाराओं के प्रभाव से जुलाई माह से सितंबर तक भारत में मूसलाधार बारिस होती है । यह जेट हवाओं के कारण ही संभव होता है । जेट धाराएं क्या है, यह किस तरह से भारत की जलवायु को प्रभावित करती है ? (niossocialscience.blogspot.com)

हिमाद्रि श्रेणी की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिए ।

हिमाद्रि श्रेणी की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिए । हिमाद्रि (सर्वोच्च हिमालय) यह हिमालय की सबसे उत्तरी तथा सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला है । हिमालय की यही एक पर्वत श्रेणी ऐसी है , जो पश्चिम से पूर्व तक अपनी निरन्तरता बनाए रखती है । इस श्रेणी की क्रोड ग्रेनाइट शैलों से बनी है , जिसके आस - पास कायान्तरित और अवसादी शैलें भी मिलती हैं । इस श्रेणी के पश्चिमी छोर पर नंगापर्वत शिखर ( 8126 मी . ) तथा पूर्वी छोर पर नामचावरवा शिखर ( 7756 मी . ) है । इस पर्वत श्रेणी की समुद्र तल से औसत ऊँचाई लगभग 6100 मी . है । इस क्षेत्र में 100 से अधिक पर्वत शिखर 6100 मी . से अधिक ऊँचे हैं । संसार की सबसे ऊँची पर्वत चोटी एवरेस्ट ( 8848 मी . ) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है । काँचनजुँगा ( 8598 मी . ) मकालू , धौलागिरि तथा अन्नपूर्णा आदि हिमाद्रि की अन्य चोटियाँ है जिनकी ऊँचाई आठ हजार मीटर से अधिक है । काँचनजुँगा भारत में हिमालय का सर्वोच्च शिखर है ।  हिमाद्रि पर्वत श्रेणी वर्ष भर हिमाच्छादित रहती है । इस हिमाच्छादित पर्वत श्रेणी में छोटी - बड़ी अनेक हिमानियाँ है । इन हिमानियों का बर्फ पिघल - पिघल कर उत्तर भारत की

भारत सरकार अधिनियम 1935 की प्रमुख विशेषताओं की परख कीजिए ।

भारत सरकार अधिनियम 1935 की प्रमुख विशेषताओं की परख कीजिए । 1935 के अधिनियम(Act of 1935) द्वारा अखिल भारतीय संघ की स्थापना की गई तथा केन्द्र में द्वैध शासन स्थापित किया गया। गवर्नर-जनरल को कुछ विशेष अधिकार देकर संघीय व्यवस्थापिका को शक्तिहीन बना दिया गया।मुस्लिम लीग ने प्रांतीय स्वायत्तता की माँग पर जोर दिया था, ताकि मुस्लिम बहुमत वाले प्रांतों में वे स्वतंत्र और केन्द्र से मुक्त रह सकें। 1935 का अधिनियम की विशेषताएँ - 1935 के अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गयी। इस संघ को ब्रिटिश भारतीय प्रांत कुछ भारतीय रियासतें जो संघ में शामिल होना चाहती थी, मिलकर बनाया गया था। 1935 के अधिनियम द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त करके केन्द्र में द्वैध शासन लागू किया गया। केन्द्रीय सरकार की कार्यकारिणी शक्ति गवर्नर जनरल में निहित थी। संघ में प्रशासन के विषय दो भागों में विभक्त थे– 1.) हस्तान्तरित 2.) रक्षित। रक्षित विषयों में प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, धार्मिक विषय और जनजातीय क्षेत्र सम्मिलित थे। बाकी सारे विषय हस्तांतरित ग्रुप में आते थे। सन् 1935 के अधिनियम द्वारा प्

जयन्तिया तथा गारो लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया था ? व्याख्या कीजिए ।

जयन्तिया तथा गारो लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया था ? व्याख्या कीजिए । जयंतिया और गारों विद्रोह ( 1860-1870 ) :  प्रथम एंग्लो - बर्मा युद्ध के उपरांत अंग्रेजों ने ब्रह्मपुत्र घाटी ( आधुनिक असम ) को सिल्हट ( आज का बांग्लादेश ) से जोड़ने के लिए एक सड़क बनाने की योजना बनाई । भारत के उत्तर - पूर्वी भाग ( आधुनिक मेघालय ) में जयंतिया और गारों लोगों ने इस सड़क के निर्माण का विरोध किया जो कि अंग्रेजों के लिए सैन्यदलों के आवागमन के लिए यौद्धिक महत्व की थी । 1827 में जयंतिया लोगों ने काम को रोकने की कोशिश की और बहुत जल्दी ही यह असंतोष पड़ोस की गारो पहाड़ियों तक फैला गया । सतर्क अंग्रेजों ने कुछ जयंतिया और गारो गांवों को जला दिया । अंग्रेज़ों द्वारा सन् 1860 के दशक में गृहकर और आयकर शुरु किए जाने पर यह शत्रुता और भी बढ़ गई । जयंतियाओं के नेता यू कियांग नाँगवाह को गिरफ्तार कर लिया गया और सार्वजनिक रूप से उसे फांसी दे दी गई और गारो नेता तोगान संगमा अंग्रेजों से हार गए ।

ज्योतिराव गोविन्दराव फुले को भारत का एक प्रसिद्ध समाज सुधारक क्यों माना जाता था ? कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए ।

ज्योतिराव गोविन्दराव फुले को भारत का एक प्रसिद्ध समाज सुधारक क्यों माना जाता था ? कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए । जोतिराव गोविंदराव फुले एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं ''जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व पिछडे और अछूतो के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।  इनका मूल उद्देश्य स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, बाल विवाह का विरोध, विधवा विवाह का समर्थन करना रहा है। फुले समाज की कुप्रथा, अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे। अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया। फुले महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। उन्होंने कन्याओं के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पु

1871 में हुये फ्राँको प्रसियन युद्ध के परिणामों की व्याख्या कीजिए ।

1871 में हुये फ्राँको प्रसियन युद्ध के परिणामों की व्याख्या कीजिए । फ्रेंको-प्रुशियन युद्ध , या फ्रेंको-जर्मन युद्ध , (1870-71) युद्ध जिसमें प्रशिया के नेतृत्व में जर्मन राज्यों के गठबंधन ने फ्रांस को हराया, महाद्वीपीय यूरोप में फ्रांसीसी आधिपत्य को समाप्त किया और एक एकीकृत जर्मनी का निर्माण किया। सामान्य तौर पर, इस संघर्ष के कई परिणामों को इंगित किया जा सकता है। इन सबके बीच वे दूसरे फ्रांसीसी साम्राज्य के उद्देश्य पर जोर देते हैं, नेपोलियन का पतन और जर्मन एकीकरण के लिए बाधाओं की कमी। फ्रैंकफर्ट संधि 10 मई, 1871 को फ्रैंकफर्ट संधि पर हस्ताक्षर के साथ विजेताओं और हारे के बीच वार्ता का समापन हुआ। इसकी धाराओं के तहत जर्मन हाथों में एल्सेस और लोरेन के प्रांतों का पारित होना था।. इसके अलावा, फ्रांस को एक बड़ी युद्ध क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया, जो पांच बिलियन फ़्रैंक तक पहुंच गया। जब तक उसने कुल भुगतान नहीं किया, संधि ने स्थापित किया कि जर्मन सैनिकों को फ्रांस के उत्तर में रहना चाहिए। वे वहां 3 साल तक रहे। फ्रांसीसी को केवल एक चीज मिली कि 100,000 कैदी रिहा हो गए.

मुगल काल की चित्रकला के स्वरूप की व्याख्या कीजिए ।

मुगल काल की चित्रकला के स्वरूप की व्याख्या कीजिए । भारत में मुगल चित्रकला 16 वीं और 18 वीं शताब्दी के बीच की अवधि का काल है । यह वह समय था जब मुगलों ने भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया था । मुगल चित्रकला का विकास सम्राट अकबर , जहाँगीर और शाहजहाँ के शासनकाल में हुआ । मुगल चित्रकला का रूप फारसी और भारतीय शैली का मिश्रण के साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं का संयोजन भी है । मुगल चित्रकला का इतिहास : भारत की मुगल चित्रकला हुमायूँ के शासनकाल के दौरान विकसित हुई । जब वह अपने निर्वासन से भारत लौटा तो वह अपने साथ दो फारसी महान कलाकारों अब्दुल समद और मीर सैयद को लाया । इन दोनों कलाकारों ने स्थानीय कला कार्यों में अपनी स्थिति दर्ज कराई और धीरे - धीरे मुगल चित्रकला का विकास हुआ । कला की मुगल शैली का सबसे पूर्व उदाहरण ' तूतीनामा पेंटिंग ' है । ‘ टेल्स ऑफ - ए - पैरट जो वर्तमान में कला के क्लीवलैंड संग्रहालय में है । एक और मुगल पेंटिंग है , जिसे ‘ प्रिंसेज़ ऑफ द हाउस ऑफ तैमूर ' कहा जाता है । यह शुरुआत की मुगल चित्रकलाओं में से एक है जिसे कई बार फिर से बनाया गया ।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की धातुओं तथा शिल्पकलाओं के ज्ञान का वर्णन कीजिये ।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों की धातुओं तथा शिल्पकलाओं के ज्ञान का वर्णन कीजिये । सिन्धु घाटी सभ्यता में लोग पत्थर के औज़ारों का काफी उपयोग करते थे, इसके साथ-साथ वे कई धातुओं से भी परिचित थे, इसमें कांसा धातु प्रमुख थी। ताम्बे और टिन के मिश्रण ने कांस्य धातु का निर्माण किया जाता हूँ। सिन्धु घाटी सभ्यता में कला व शिल्प काफी विकसित था, कई स्थानों से उत्तम कलाकृतियों की प्राप्त हुई है। सिन्धु घाटी सभ्यता में बर्तन का निर्माण, मूर्तियों का निर्माण व मुद्रा का निर्माण इत्यादि प्रमुख शिल्प थे। सिन्धु घाटी सभ्यता में कांस्य कलाकृतियाँ, मृणमूर्तियाँ, मनके की वस्तुएं व मुहरें प्राप्त हुई हैं। मनकों का निर्माण कार्नेलियन, जेस्पर, स्फटिक, क्वार्टज़, ताम्बे, कांसे, सोने, चांदी, शंख, फ्यांस इत्यादि का उपयोग किया गया था। सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग नाव निर्माण की कला भी जानते थे। औज़ार, हथियार, गहने व बर्तनों के निर्माण के लिए ताम्बा और कांसा धातु का इस्तेमाल किया जाता था। सिन्धु घाटी सभ्यता से फलक, बाट व मनके प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदड़ो से हाथ से बुने हुए सूती कपडे का एक टुकड़ा मिला है। उत्तर प्रदेश के आलमगी

जाति प्रथा की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।

जाति प्रथा की किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन जाति प्रथा की निम्न विशेषताएं हैं - जाति जन्म पर आधारित होती है  जाति व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता यह है की जाति जन्म से आधारित होती है। जो व्यक्ति जिस जाति मे जन्म लेता है वह उसी जाति का सदस्य बन जाता है। जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय प्रत्येक जाति का एक परम्परागत व्यवस्था होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण जजमानी व्यवस्था रही है। जजमानी व्यवस्था मे जातिगत पेशे के आधार पर परस्पर निर्भरता की स्थिति सामाजिक संगठन का आधार थी। लेकिन आज आधुनिकता के चलते नागरीकरण, औधोगीकरण आदि के चलते अब जाति का अपना परम्परागत व्यवसाय बहुत कम रह गया है। जाति स्थायी होती है जाति व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति की जाति हमेशा के लिए स्थायी होती है उसे कोई छुड़ा नही सकघता या बदल नही सकता। कोई भी व्यक्ति अगर आर्थिक रूप से, राजनैतिक रूप से या किसी अन्य साधन से कितनी भी उन्नति कर ले लेकिन उसकी जाति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही हो सकता। ऊंच- नीच की भावना हांलाकि अब वर्तमान भारतीय ग्रामीण समाज में जाति के परम्परागत संस्तरण के आधारों मे परिवर्तन आया है। लेकिन फ

नगर परिषद अपने व्यय के लिये धन किस प्रकार प्राप्त करती है ? कोई दो तरीके लिखिए ।

नगर परिषद अपने व्यय के लिये धन किस प्रकार प्राप्त करती है ? कोई दो तरीके लिखिए । नगर परिषद के आय के स्रोत -  धन के बिना कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता । नगर परिषदों के पास आय के भिन्न - भिन्न स्रोत हैं । इन स्रोतों को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है :  कर : सम्पत्ति , वाहन , मनोरंजन तथा विज्ञापन आदि पर कर से प्राप्त आय ।  किराया तथा शुल्क / अधिभार : जलापूर्ति शुल्क , सीवर व्यवस्था शुल्क , लाइसेन्स फीस , सामुदायिक भवनों , बरात घरों तथा दुकानों आदि का किराया ।  अनुदान : राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान । जुर्माने : कर न देने वालों , कानून तोड़ने वालों तथा कानून का अतिक्रमण करने वालों पर किए गए जुर्मानों से प्राप्त आय ।

भारत में निर्वाह कृषि की कोई दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।

भारत में निर्वाह कृषि की कोई दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए । निर्वाह कृषि : - इस प्रकार की कृषि स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए की जाती है । इसका मुख्य उद्देश्य किसी दिये गये क्षेत्र के अधिक से अधिक लोगों के जीवन निर्वाह से होता है । स्थानान्तरी कृषि, स्थायी कृषि तथा गहन कृषि जीवन निर्वाह कृषि के प्रकार हैं । इस कृषि में जोतों का आकार छोटा होता है , मानवीय श्रम तथा साधारण कृषि यंत्रों का अधिक उपयोग होता है ।  मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के किये सभी प्रकार की खादों का उपयोग किया जाता है । जीवन निर्वाह कृषि मध्य प्रदेश, पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण बिहार के कुछ भागों, साथ ही देश के अधिकांश पर्वतीय प्रदेशों में की जाती है ।

भारत में ब्रिटिश शासन में साहूकार वर्ग के बढ़ने के कोई दो कारण स्पष्ट कीजिए ।

भारत में ब्रिटिश शासन में साहूकार वर्ग के बढ़ने के कोई दो कारण स्पष्ट कीजिए । भारत में ब्रिटिश शासन में साहूकार वर्ग के बढ़ने के कोई दो कारण - गैर-आर्थिक दबाव और बल प्रयोग और किसानों को दण्ड देने के अधिकार भी दिये जाते थे ताकि वे अपना भू-राजस्व की वसूल का काम ठीक तरह कर सकें ।

निम्न में से कौन सी सबसे गंभीर समस्या है, जो कृषि को प्रभावित करती है ?

निम्न में से कौन सी सबसे गंभीर समस्या है, जो कृषि को प्रभावित करती है ?  (A) मृदा अपरदन  (B) भूमि का लवणीकरण  (C) भूमि का क्षारीयकरण  (D) पोषक तत्वों की कमी मृदा अपरदन प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली एक भौतिक प्रक्रिया है जिसमें मुख्यत: जल एवं वायु जैसे प्राकृतिक भौतिक बलों द्वारा भूमि की ऊपरी मृदा के कणों को अलग कर बहा ले जाना सम्मिलित है। यह सभी प्रकार की भू-आकृतियों को प्रभावित करता है। मृदा में लवण (नमक) की मात्रा को मृदा लवणता (Soil salinity) कहते हैं। मृदा में नमक की मात्रा बढने की क्रिया लवणीकरण (salinization) कहलाती है। नमक, प्राकृतिक रूप से मिट्टी तथा जल में पाया जाता है। मृदा का लवणीकरण प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा हो सकता है जैसे, खनिज अपक्षय (mineral weathering) या समुद्र के क्रमशः दूर जाने से। सिंचाई करने आदि कृत्रिम क्रियाओं से भी मृदा की लवणता बढ़ सकती है,और मृदा पोटाश से दूर की जाती है। क्षारीय भूमि (Alkali soils या alkaline soils) उस मिट्टी को कहते हैं जिनका पीएच मान ९ से अधिक होता है. क्षारीय मृदा उस प्रकार की मृदा या मिट्टी को कहते हैं जिसमें क्षार तथा लवण विशेष मात

राष्ट्रीय शिक्षा नीति निम्न में से किस वर्ष में बनाई गई थी ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति निम्न में से किस वर्ष में बनाई गई थी ? 1976 1986 1996 1980 मई, 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जो अब तक चल रही है। इस बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति, तथा 1993 में प्रो. यशपाल समिति का गठन किया गया।

एक व्यक्ति को निम्न में से कौन सी आयु आम चुनाव में मतदान करने योग्य बनाती है ?

एक व्यक्ति को निम्न में से कौन सी आयु आम चुनाव में मतदान करने योग्य बनाती है ? 16 वर्ष 17 वर्ष 18 वर्ष 19 वर्ष मताधिकार की आयु अलग - अलग देशों में वोट डालने की अलग - अलग आयु निर्धारित की गई है । डेनमार्क तथा जापान में 25 वर्ष से ऊपर का व्यक्ति ही वोट डाल सकता है , जबकि नार्वे में यह आयु 23 वर्ष है । लेकिन ग्रेट ब्रिटेन, अमेरिका तथा सोवियत संघ में यह आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है ।  हमारे देश में भी अब वोट डालने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित कर दी गई है । इस प्रकार वे सभी स्त्री - पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष है, बिना किसी भेदभाव के वोट डालने के अधिकारी हैं । मताधिकार का प्रयोग करने के लिए निम्न योग्यताओं का होना अनिवार्य है : - वह भारत का नागरिक हो वह 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो वह व्यक्ति , जिसे न्यायालय द्वारा दण्डित न किया गया हो

जर्मनी, आस्ट्रिया तथा इटली ने निम्न में से किस वर्ष में ट्रिपल एलायंस पर हस्ताक्षर किये थे ?

जर्मनी, आस्ट्रिया तथा इटली ने निम्न में से किस वर्ष में ट्रिपल एलायंस पर हस्ताक्षर किये थे ? 1882 1884 1886 1888 त्रिपक्षीय संधि (Triple Alliance), वर्ष 1882 की यह संधि जर्मनी को ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली से जोड़ती है।

गुजरात तथा बिहार में स्थित दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम लिखिये

गुजरात तथा बिहार में स्थित दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम लिखिये गुजरात में स्थित दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम - सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सूरत हवाई अड्डा बिहार में स्थित दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों के नाम - जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, पटना गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, बोध गया

आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में स्थित किन्हीं दो बंदरगाहों के नाम लिखिये ।

आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में स्थित किन्हीं दो बंदरगाहों के नाम लिखिये । आंध्र प्रदेश में स्थित दो बंदरगाहों के नाम - विशाखापत्तनम पोर्ट काकीनाडा पोर्ट तमिलनाडु में स्थित किन्हीं दो बंदरगाहों के नाम - तूतीकोरिन कोचिंग

ब्रह्मपुत्र नदी की किन्हीं दो सहायक नदियों के नाम लिखिए ।

ब्रह्मपुत्र नदी की किन्हीं दो सहायक नदियों के नाम लिखिए । ब्रह्मपुत्र नदी की किन्हीं दो सहायक नदियों के नाम - 1. सुवनश्री 2. तिस्ता 3. लोहित

जम्मू तथा कश्मीर में स्थित किन्हीं दो पर्वत श्रृंखलाओं के नाम लिखिये

जम्मू तथा कश्मीर में स्थित किन्हीं दो पर्वत श्रृंखलाओं के नाम लिखिये जम्मू तथा कश्मीर में स्थित किन्हीं दो पर्वत श्रृंखला  शिवालिक हिमाद्रि मध्य हिमालय

Nios Class 10 Social Science Chapter 22

Nios Class 10 Social Science Chapter 22 | जनता की सहभागिता तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया | परीक्षा में आने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न | Social Science (213)

Nios Class 10 Social Science Chapter 23

Nios Class 10 Social Science Chapter 23 | भारतीय लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ | परीक्षा में आने वाले महत्वपूर्ण प्रश्न | Social Science (213)

मध्यकाल के दौरान 'भक्ति आंदोलन' के किन्हीं दो विशेषताओं की व्याख्या कीजिए ।

मध्यकाल के दौरान 'भक्ति आंदोलन' के किन्हीं दो विशेषताओं की व्याख्या कीजिए । भक्ति आंदोलन की मुख्य विशेषताएं है। 1. एक ईश्वर मेंं आस्था- ईश्वर एक है वह सर्व शक्तिमान है ।  2. बाह्य आडम्बरों का विरोध- भक्ति आंदोलन के संतों ने कर्मकाण्ड का खण्डन किया । सच्ची भक्ति से मोक्ष एवं ईश्वर की प्राप्ति होती है। 3. सन्यास का विरोध- भक्ति आंदोलन के अनुसार यदि सच्ची भक्ति है ईश्वर में श्रद्धा है तो गृहस्थ में ही मोक्ष मिल सकता है । 4. वर्ण व्यवस्था का विरोध- भक्ति आंदोलन के आंदोलन के प्रवतकों ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया है । ईश्वर के अनुसार सभी एक है । 5. मानव सेवा पर बल- भक्ति आंदोलन के समर्थकों ने यह माना कि मानव सेवा सर्वोपरि है । इससे मोक्ष मिल सकता है । 6. हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रयास- भक्ति आंदोलन के द्वारा संतों ने लोगों को यह समझाया कि राम, रहीम में कोई अंतर नहीं । 7. स्थानीय भाषाओं में उपदेश- संतों ने अपना उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिया । भक्तों ने इसे सरलता से ग्रहण किया । 8. समन्वयवादी प्रवृत्ति- संतों, चिन्तकों, विचारकों ने ईर्ष्या की भावना को समाप्त करके लोगों में सामंजस्य, स

'अधिकारों एवं कर्तव्यों' के बीच संबंध को स्पष्ट कीजिए ।

'अधिकारों एवं कर्तव्यों' के बीच संबंध को स्पष्ट कीजिए। अधिकार लोगों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध एवं क्रिया के नियम हैं । ये राज्य और व्यक्ति अथवा समूह के कार्यों पर कुछ सीमाएं तथा दायित्व लगाते हैं । उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को जीने का अधिकार है तो इसका अर्थ है कि किसी दूसरे व्यक्ति को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं है । अधिकार किसी व्यक्ति द्वारा अपेक्षित ऐसे अधिकार हैं जो उसके स्वयं के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं तथा समाज या राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त हैं । अधिकार स्वतंत्रता या हकदारी के कानूनी , सामाजिक अथवा नैतिक सिद्धान्त हैं । कानूनी व्यवस्था , सामाजिक परम्परा अथवा नैतिक सिद्धांतों के अनुसार अधिकार मूलभूत आदर्श नियम हैं जो लोगों को कुछ करने अथवा कुछ पाने का हक देते हैं । अधिकार सामान्यतः समाज अथवा संस्कृति के आधार स्तंभों के रूप में किसी भी सभ्यता के मूल माने जाते हैं । परंतु अधिकारों का वास्तविक अर्थ तभी है जब व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं । कर्त्तव्य किसी व्यक्ति से कुछ किये जाने की अपेक्षा करते हैं । अधिकार तथा कर्त्तव्यों के एक दूसरे के पूर